पृथ्वी ,पृथ्वी का आकर कैसा है?

 

Earth पृथ्वी ,पृथ्वी का आकर कैसा है?

 

आइए हम  पृथ्वीपृथ्वी का आकर कैसा है?  इसका अध्ययन करे । कुछ विद्वानों का मत है की

धरती का आकर  गोल है। तथा कुछ का मत है कि चपटी है |  धरती के तल का क्षेत्रफल -51 करोड़ वर्ग   

किमी है ।  भार 588 खरब टन तथा आयतन 10 खरब घन किमी है|  लेकिन  जिस धरातल पर हम रहते

है ,उसे स्थल मण्डल भी कहते है | जिसका 71 %जल तथा 29 %स्थल भाग है |, बेबीलोनिया के निवासी

ने चपटा तथा वृत्ताकार मानते है। पहली बार यूनानवासियों  ने पृथ्वी को गोलाकारमानाहै । भारतीय

विद्वानों बराहमिहिर ,आर्यभट्ट ,एवं भास्करचार्य ने भी  गोल मानते  है ।|

पृथ्वी के गोल होने के प्रमाण  :-  

विश्व के सभी स्थानों पर एक साथ न तो सूर्य निकलता, न छिपता है। पृथ्वी  का आकर कैसा  है ? 

जिसके  कारण सूर्य पहले पूर्व के देशों में दिखाई पड़ता है ।तथा बाद में पश्चिम के देशों में दिखायी पड़ता

है। सन 1870 में डा०बैलेस ने वेडफर्ड नगर में एक प्रयोग किया । यह सिध्द करके दिखा दिया कि पृथ्वी

चपटी नहीं है वहगोल है।केवल गोल वस्तु से ही वृत्ताकार छाया पड़ सकती है। अतः स्पष्टतः सिध्द हो

जाता है  चपटी न होकर गोल है। 

  पृथ्वी की गतियां (Earth motion):

पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती रहती है। धरती के आकर के कारण एवं गति के कारण

दिन -रात होता है।    वह अपने अक्ष  पर  23. 5 डिग्री झुकी है। जो 23 घण्टा ,56 मिनट व 4 सेकण्ड में

एक चक्कर पूरा करती है। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 365 दिन ,5 घण्टा ,48 मिनट और 46 सेकन्ड में

करती है। जिसके कारण ऋतु परिवर्तन होते रहते है। तथा  परिक्रमा के कारण उत्तरायण एवं दक्षिणायन

की स्थित का ज्ञान होता है।जब सूर्य उत्तरगोलार्द्ध में होता है तबग्रीम ऋतु तथा दक्षिणीय गोलार्द्ध सरद

ऋतु होता है।पृथ्वी सूर्य से निकटतम दूरी पर 3 जनवरी को होती है। इस स्थिति को पेरिहिलियन( उपसौर

)कहते है। तथा सूर्य दक्षिणायन में होता है। तथा जब सूर्य उत्तरायण में स्थिति होता है। तो उस

स्थितिकोअपहिलियन (अपसौर )कहते है और 4 जुलाई को  सवार्धिक दूरी पर होती है।पूरे वर्ष में सूर्य

187 दिन उत्तरायण तथा  187 दिन दक्षिणायन की स्थिति रहता है।जब सूर्य उत्तरगोलार्द्ध में होता है तब

ग्रीम ऋतु तथा दक्षिणीय गोलार्द्ध सरद ऋतु होता है।

 

   पृथ्वी  की गति के  कारण  सूर्य ग्रहण(Solar Eclipse)    होता है :-

जब चन्द्रमा ,सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है। सूर्य ग्रहण आंशिक और पूर्ण ग्रहण होता है।  पूर्ण सूर्य

ग्रहण अमावस्या को होता है। यही वह समय होता है ।जो सूर्यका किरीट( Corrona )देखा जा सकता है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान ही डायमण्ड रिंग की घटना होती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि

7 मिनट ,40 सेकण्डकी हो सकती है। प्रत्येक माह में सूर्य ग्रहण नहीं होता है।

 

चन्द्र ग्रहण कैसे लगता है?  

जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वीआ जाती है ।तब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है। तथा सूर्य के
प्रकाश से वंचित रह जाती है। जिसके फलतः चन्द्रमा का पूर्ण या आंशिक भाग प्रकाशित नहीं होता है ।
तब चन्द्र ग्रहण होता है चन्द्र ग्रहण पूर्णमासी को पङता है ।चन्द्र ग्रहण प्रत्येक पूर्णमासी को नहीं पङता
है  | जब  छाया चन्द्रमा के छोटे  भाग पर पड़ती है तो उसे आंशिक चन्द्र ग्रहण
कहते है। तथा पुरे भाग पर पड़ती तो पूर्ण चन्द्र  ग्रहण होता है।                                                                                                                

 

जब चन्द्रमा पृथ्वी से निकटतम बिंदु या उसके करीब होता है।तो  वह अपने सामान्य आकर से 14 %बड़ा
और 30 %अधिक चमकदार दिखाई देता है ।यह स्वरूप ही
सुपरमून(Super moon ) कहलाता है। यह घटना पूर्णमासी के दिन होती है रिचर्ड नोलले ने
1979 में चन्द्रमा के सुपरमून का नाम दिया था। 

ज्वार-भाटा क्या है? 

जब पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए ।सूर्य और चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण समुन्द्र का पानी
ऊपर उठता है ।और नीचे गिरता है। ऐसी को ज्वार -भाटा कहते है| 
यह प्रक्रिया 12 घण्टे ,26 मिनट के अंतराल पर घटती है |विलियम वेवेल ने ज्वार -भाटा के सम्बन्ध
में प्रगामी तरंग सिध्दांत प्रतिपादित किया है.  | 
 

दीर्घ ज्वार (Spring tides ):-  जब पृथ्वी ,सूर्य एवं चन्द्रमा एक सीध में बनते है। यह स्थिति

अमावस्या व पूर्णिमा के दिन होती है ।इसी दिन दीर्घ ज्वार आते है।

लघु ज्वार (Neap tides ):-  जब सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण बनाते है ।तब लघु ज्वार

आते है ।यह स्थिति कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आती है|

निष्कर्ष :-

पृथ्वी के आकर एवं गति  के कारण  जलवायु परिवर्तन होता है ।,जिससे  दिन -रात का छोटा -बड़ा ज्ञान

होता  है। तथा सूर्य -चन्द्र ग्रहण और  ज्वार -भाटे की  जानकारी होती है। तथाअनेक आकाशीय घटनायें

का ज्ञान हो जाता है

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