आइए  अध्ययन करे कि पृथ्वी की आन्तरिक संरचना कैसे हुई है ? इसकी सही जानकारी करना

असम्भव नहीं है तो कठीन कार्य है। क्योकि पृथ्वी की आन्तरिक भाग मानव के लिये दृश्य नहीं है । आज

भी रहस्य बना हुआ ।  पृथ्वीं के सम्बन्ध में कोई प्रत्येक्ष प्रमाण नहीं मिलता है  । विभिन्न वैज्ञानिको धरती की

संरचना की जानकारी अप्रत्यक्ष साधनो से होती है। जिसमे अप्राकृतिक एवं प्राकृतिक साधनो से अनुमान

लगाया गया है ।

विभिन्न भूगोलवेत्ताओं ने रासायनिक संगठन द्वारा पृथ्वी की संरचना के विषय में अपने  विचार व्यक्त

किये।  जिसमे जेम्स जीन के ज्वारीय संकल्पना ,  लाप्लास के निहारिका सिध्दांत दिया । किन्तु अस्पस्ट है

। रासायनिक संगठन द्वारा पृथ्वी की संरचना के विषय में स्वेस, डेली एवं अभिनव प्रमुख है ।

  • अप्राकृतिक साधन
  • प्राकृतिक साधन
  • एडवर्ड स्वेस मत केअनुसार
  • अभिनव मत के अनुसार
  • डेली मत के अनुसार
  • असम्बध्दता
  • निष्कर्ष

अप्राकृतिक साधन :-

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना  में अप्राकृतिक साधनो विशेष  महत्त्व है ।

(a) घनत्व – पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति सेंटीमीटर है । भूमि  के बाह्रा परत का घनत्व 3.0

ग्राम / सेंटीमीटर है । पृथ्वी के अन्तरतम का 11से  13.6 ग्राम प्रति सेंटीमीटर है । पृथ्वी का घनत्व ऊपर

से नीचे  बढ़ता है ।

(b)  दबाव – धरती की अंदर के बनावट में विभिन्नता है । जिसके कारण दबाव बढ़ने से घनत्व बढ़ता है ।

पृथ्वी के आन्तरिक भाग के दाबांतर दबाव के द्वारा नहीं होता है । वहा पाये जाने  वाले पदार्थो के अधिक

घनत्व के कारण है ।

(c) तापमान –  अचला के  आन्तरिक भाग में 8 किमी प्रवेश  करते है ।, तो प्रति 32 मीटर तक 1 डिग्री

सेंटीग्रेट  की बृद्धि होती  है ।

  • 8 किमी तक  = प्रत्येक  32 मीटर पर =  1°C  की वृद्धि होती है।
  • प्रथम 100 किमी में = प्रत्येक  1 किमी  पर =  1 2°C  की वृद्धि होती है।
  • बाद के 300 किमी में  =प्रत्येक  1 किमी  पर =   2°C  की वृद्धि होती है।
  • उसके पश्चात तक  =      प्रति  किमी  पर =   1°C  की वृद्धि होती है।

धरा के आन्तरिक भाग में ऊष्मा बाहर की ओर संवहन तरंगों के रूप में होता है । ये तरंगो रेडियों सक्रीय पदार्थ एवं गुरुत्व बल से होता है ।

प्राकृतिक साधन में भूकम्पी लहरे –

पृथ्वी की आन्तरिक  संरचना के बारे में भूकम्पी हलरों  विश्वसनीय एवं सटीक ज्ञान  प्राप्त हुआ है ।

भूकम्प के फोकस  से विभिन्न प्रकार की लहरे उत्पन्न होती है । धरती  पर इन लहरों को तीन भागो में

विभाजित किया जा सकता है ।

(a) प्राथमिक लहरे (primary  waves)-  इन्हे  अनुदैर्ध्य  लहरे अथवा सम्पीड़ित लहरे भी कहते है

। इनकी आवृति अधिक होती है ।  कठोर चट्टानों में इनकी गति अधिक होती है ।  तरल पदार्थो में कम

होती है । इन लहरों की तुलना ध्वनि लहरों से की गयी है ।

(b)द्वितीय  लहरे (secondary waves )-  द्वितीय लहरों को अनुप्रस्त लहरे कहते है ।   इन लहरों

की तुलना प्रकाश की लहरों से की गयी है। ये तरल पदार्थ से नहीं गुजरती है । पृथ्वी के विभिन्न भागो में

सिस्मोग्राफ से रिकार्ड नहीं की जाती है ।  ये फोकस से 103 अंश के कोण पर बाहर होती है । ये छाया

क्षेत्र बनती है । इससे सिध्द होता है कि धरती की लगभग आधी गहराई पर तरल परत है । वे पृथ्वी कि

मध्य से नहीं गुजरती है ।

 (C) धरातलीय तरंग  (surface waves )-  इन तरंगो को लम्बी लहरे भी कहते है ।  ये तरंग कम

आवृति एवं अधिक तरंगदैर्ध्य की होती है । इनकी मापक सबसे अन्त में रिकार्ड की जाती है ।  इन तरंगो

से जान- माल का नुकसान अधिक होता है ।

(d) ज्वालामुखी उदगार – ज्वालामुखी द्वारा पृथ्वी की अन्तःकरण की सही जानकारी नहीं मिलती है।

एडवर्ड स्वेस मत केअनुसार:-

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना

पृथ्वी के विभिन्न परतो के सम्बन्ध स्वेस ने विशेष उल्लेख किया है । धरती के ऊपरी भाग  परतदार चट्टानों

से बना है ।  जिसमे सिलिकेट की प्रधानता है । स्वेस केअनुसार पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को तीन

भागो में विभाजित किया गया है।

(a) सियाल (sial)-  पृथ्वी के ऊपरी परत के नीचे  सियाल की परत पायी जाती है जिसकी रचना

ग्रेनाइट से हुई है । यह परत सिलिका(Silica)  और एल्युमिनियम (Aluminium) से बनी है।महाद्वीपों

की रचना सियाल से हुई है। इनका घनत्व 2.6-2.9 तथा आयतन 50 -300 किमी है ।

(b) सिमा (sima)-  सियाल के नीचे की परत है ।इसकी रचना बेसाल्ट एवं आग्नेय चट्टानों से हुई है ।

इसमें सिलिका और मैग्नेसियम की प्रधानता है ।इसे   SI+MA=SIMA कहा  जाता है । इसका  घनत्व

2.9-4.7 एवं परत की मोटाई1000-2000  किमी है । समुद्रो की रचना इसी परत से हुई ।

(c) निफे (nife)-   पृथ्वी की अन्तिम परत जो सीमा के   नीचे  है ।  पृथ्वी की आन्तरिक संरचना में

इनकी परत निकिल एवं फेरियम से बनी है ।  इनमे nickel+ferrim=NIFE  के तत्वों  से हुईं है। इन

परत रचना ककठोर एवं भारी तत्वों से हुआ है ।  इनका घनत्व 11 एवं 6500 है ।

अभिनव मत के अनुसार:-

अभिनव ने पृथ्वी की आन्तरिक  संरचना को तीन वृहत मण्डलों  में विभक्त किया जाता है ।

(a) भू – पर्पटी(crust)–   यह ठोस पृथ्वी का सबसे बहरी भाग है । इसकी  मोटाई  महासगरों में 5

किमी एवं महाद्वीपों में 30 किमी  है। इनकी मोटाई  पर्वतीय शृंखला में 70 से  100 किमी है ।   ऊपरी

क्रस्ट की गति 6.1 किमी प्रति सेकेण्ड  एवं घनत्व 2.8 है ।  निचली  क्रस्ट की गति 6.9 किमी प्रति

सेकेण्ड  एवं घनत्व 3.0 है।

(b) मैंटिल(mantle)-धरती केभूपटल एवं कोर के बीच के  भाग को मैंटल  कहते  है । इसका घनत्व

3.3 से 5.7 है तथा  गहराई 2900 किमी  है। इसकी गति 6.9 से 8.1 किमी प्रति सेकेण्ड है । पृथ्वी के

कुल आयतन का 83% एवं द्रव्यमान का 68% है।

(c) क्रोड(core )- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना में क्रोड सबसे नीचे है । इसका विस्तार  2900 से

6371  किमी  तक है।  p तरंगो की गति में अचानक  वृद्धि  होती है । यह 13.6 किमी प्रति सेकेण्ड हो

जाती है। गति की बृद्धि चट्टानों के घनत्व में एकाएक परिवर्तन (5.5-10) हो जाता है

1- बाह्रा क्रोड 2- आन्तरिक क्रोड

डेली मत के अनुसार :-

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना

डेली मत के अनुसार पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को तीन परतों  में वर्णन किया है  ।

(a) बाह्रा परत –  इस परत की रचना सिलिकेट से हुई है । इसका  घनत्व 3.00 एवं मोटाई 1600

किमी है।

(B)  मध्यवर्ती परत –  पृथ्वी के बाह्रा  परत  एवं केंद्रीय परत के मिश्रण से बना है। इसका घनत्व 4,5-9

एवं मोटाई 1280 किमी है ।

(C) केंद्रीय परत –  धरती की आन्तरिक बनावट में  अन्तिम  परत है । इसका घनत्व 11.6 एवं मोटाई

7000  किमी है ।

असम्बध्दता :-

तरंगो के गति के कारण घनत्व में एकाएक दबांतर उत्तपन हो जाता है उस स्थिति कोअसम्बध्दता कहते है ।

(a) कोनराड असम्बध्दता– ऊपरी क्रस्ट एवं निचली क्रस्ट  के बीच जो असम्बध्दता है , उसे कोनराड

असम्बध्दता कहते है । इनका घनत्व 2.8 से 3.0 एवं 0 से 30   किमी  है ।

(b) मोहोअसम्बध्दता- क्रस्ट के नीच से लेकर 2900 किमी की गहराई तक है। इसकी गति 7.8  किमी

प्रति सेकेण्ड है।इसमें भूकम्पी लहरों की गति मंद पड़ जाती है।अतः इसे निम्न गति मंडल कहा जाता  है।

(c) रेपेटी असम्बध्दता- ऊपरी मैंटल  एवं निचली मैंटल  के बीच घनत्व सम्बंधित असम्बध्दता होती है

उसे रेपेटी असम्बध्दता  कहते है।

(d) गुटेनबर्ग असम्बध्दता – पृथ्वी के क्रोड में गति की वृदि के कारण घनत्व में एकाएक परिवर्तन होता

है जिसके कारण एकअसम्बध्दता उत्पन्न होता है तो उसे गुटेनबर्ग असम्बध्दता कहते है।

(e)लैहमन असम्बध्दता – बाह्रा क्रोड एवं आन्तरिक क्रोड के बीच घनत्व सम्बंधित  असम्बध्दता  को

लैहमन असम्बध्दता कहते है । क्रोड के आन्तरिक भाग का निर्माण निकेल एवं लोहा से हुआ है । 

निष्कर्ष:-

पृथ्वी की आन्तरिक संरचना कैसे हुई है, इस रहस्य को ज्ञात  करने की कोशिश article  में की गयी है

जिसमे अप्राकृतिक एवं प्राकृतिक साधनो , विभिन्न भूकम्पी लहरों द्वारा तथा अनेक  भूगोलवक्ताओं के

बिचारो और असम्बध्दता से किया गया है ।

Permalink: https://absuccessstudy.com/पृथ्वी-की-आन्तरिक-संरचना/ ‎

 

https://en.wikipedia.org/wiki/Structure_of_Earth


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