पृथ्वी की आयु

पृथ्वी कीआयु  का भूगर्भित इतिहास:-

  सर्वप्रथम पृथ्वी की  उत्तपति   की संकल्पना दो प्रकार से की गयी ।  जिसमें अद्वैतबादी  एवं द्वैतबादी

संकल्पना  तथा  आधुनिक सिध्दांतो के अध्ययन द्वारा ठीक प्रकार निष्कर्ष निकलने का प्रयास किया गया

। वर्त्तमान समय में ब्राम्हण की उत्तपति बिग बैंग सिध्दांतो  द्वारा सर्वमान्य है ।भूमि  की आयु की पुष्टि

उल्का पिंडो एवं चन्द्रमा के चट्टानों के विश्लेषण से ज्ञात हुआ, कि पृथवी की आयु लगभग 4.6 अरब वर्ष

है ।  जिसकी उत्तपति ज्वलित गैसीय पिंड से हुआ  था । लगभग 0.6 अरब वर्ष में उक्त गैसीय पिंड के

ऊपर भू – पटल  का निर्माण हुआ । भू – पटल  के निर्माण काल  से लेकर आज तक के इतिहास को

भूगर्भित इतिहास कहते है ।  जिसको  दो भागो में विभाजित किया गया है।

1- अजीवी  महाकल्प (Azoic era ):- भूपटल के निर्माण काल को  अजीवी महाकल्प की संज्ञा

प्रदान की गई।

 2- जीवी महाकल्प( Zoic era  ):- भूपटल के निर्माण से आज तक के पृथवी के इतिहास को जीवी

महाकल्प कहते है । चट्टानों की आयु के अनुसार जीवी महाकल्प  के पांच भाग है ।जिसमे धरती के

निर्माण से लेकर जिवासंय, जीव- जन्तुओ की उत्तपति अध्ययन  किया गया है , तथा उनके रह – सहन  ,

व्यापर , उधोग  , कृषि एवं  मनोरंजन  का भी विकाश हुआ ।

  जीवी महाकल्प  के पांच भाग है।

(1) आर्कियोजोइक (Archaeozoic era)

(2) प्रोटीरोज़ोइक (Proterozoic  era)

(3)  पेलियोजोइक (Palaeozoic era)

(4)  मिसोजोइक(Mesozoic  era)

(5a)  सीनोजोइक( Cenozoic era)

(5b) नियोजोइक (Neozoic era )

प्री-कैम्ब्रियन महाकल्प(Precambrian era) :-

जीवी महाकल्प के आर्कियोजोइक एवं प्रोटीरोज़ोइक महाकल्प का सम्मिलित रूप   प्री-कैम्ब्रियन

महाकल्प कहते है। जो धरती  की आयु   59 करोड़ से 4  अरब वर्ष पहले था । इसकी अवधि लगभग

3.41 अरब वर्ष की थी । आर्कियोजोइक इरा  की चट्टानों में जीवाश्मों का पूर्णतः आभाव है । इसमें

ग्रेनाइट तथा नीस  की प्रधानता है । इनमे सोना एवं लोहा आदि पाया जाता है । पृथवी पर जीवन की

उत्तपति इस महाकल्प में आदिसागर में हुई  थी ।

प्रोटीरोज़ोइक इरा मे  पृथ्वी की आयु का भूगर्भित इतिहास  में  समुंद्री जीवो के विकाश हुआ। इस

महाकल्प में आग्नेय चट्टाने ही पायी जाती है इसमें सुपीरियर झील , भारत धारवाड़ छोटा नागपुर  ,

कुडप्पा समूह , दिल्ही  की  चट्टाने एवं अरावली पर्वत का निर्माण हुआ है । 

पुराजीवी  महाकल्प (Palaeozoic era) :-

यह 59 करोड़ वर्ष पूर्व से 24.8  करोड़ वर्ष पूर्व तक  विद्यमान रहा ।  इसकी  अवधि 34.2 करोड़ वर्ष

की थी । पृथ्वी का भुगर्वित इतिहास में इसे  प्राथमिक युग की संज्ञा दी जाती है । इसी  समय ` समुद्र से

जीवो का पदार्पण स्थल पर हुआ ।  जिससे पृथवी की आयु  के अध्ययनहेतु इसे 6 शकों  में विभक्त

किया गया ।

1-  क्रैम्बियन शक :-    वनस्पति  एवं जीवो की उत्तपति इसी शक में हुआ था । अवसादी शैलो  एवं

जीवाश्म भी इसी शक में पाया जाता है ।  पेरिपेटस  जीवाश्म इसी काल खंड के चट्टानों में पाया जाता है ।

भारत में विंध्याचल पर्वत माला एवं घासो की उत्तपति इसी काल खंड में हुई थी । पर्वत उत्तपति से पृथ्वी

की आयु की गणना की जा सकती है ।

2- ऑर्डोविसियन शक :-  इस काल खंड में निम्न कोटि की मछलियों का विकाश हुआ ।

3-  सिल्युरियन शक :-     इस काल खंड में  रीढ़ वाले जीवों का  काल कहते है ।

4-    डिवोनियम  शक :-  इस काल खंड को मत्स्य युग की संज्ञा प्रदान की जाती है   प्रथम उभयचर स्ट्रिगोसिफीलिया  का विकाश हुआ ।

5- कार्बोनिफेरस  शक:-  इस काल में उभयचर का विस्तार हुआ ,  इसलिए इसे उभयचरों का युग कहते है ।

6- पर्मियन  शक :-  स्पेनिश मेसेटा , अल्टाई, तथा अप्लेशियन  पर्वत के कुछ भागो का निर्माण इसी में हुआ ।

मध्यजीवी  महाकल्प  (Mesozoic era):-

यह 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व से 6.5  करोड़ वर्ष पूर्व तक  विद्यमान रहा ।  इसकी  अवधि 18.3 करोड़ वर्ष

की थी । पृथ्वी की आयु  में इसे  द्वितीयक   युग की संज्ञा दी जाती है। इसे सरीसृपों का युग कहते है ।

इसे तीन भागो विभक्त किया जाता है ।

1- त्रियाशिक शक:-  इसे रेंगने वाले जीवों का काल कहा जाता है।  अंतिम चरण में उड़ने वाले सरीसृपों

एवं निम्न कोटि के स्तनियों का विकाश हुआ ।  प्रोटिथीरिया की उत्तपति हुई ।  गोडवानालैण्ड का

विभाजन इसी काल में हुआ । आस्ट्रेलिया , दक्षिण भारत , अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के स्थल निर्मित

हुए।

2-जुरैसिक  शक:-  इस काल में पुष्प पादपों अर्थात आवृतबीजी की उत्तपति हुई।  स्थल पर

डायनोसरों जैसे सरीसृपों का प्रभुत्व था ।  उड़ने वाले सरीसृप से प्रथम पक्षी आर्कियोप्टैरिक्स  की

उत्तपति  इसी काल में हुई ।

पृथ्वी कीआयु के उत्तपति

3- क्रिटेशियस  शक  :-      इसमें राकी, एंडीज , यूरोप महादीप की कई  पर्वत श्रेणियों तथा पनामा

कटक की उत्तपति आरम्भ हुई।

सिनोजोइक   महाकल्प  (Cenozoic era):-

यह 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व से  20  लाख  वर्ष पूर्व तक  विद्यमान रहा ।  इसकी  अवधि 6.3 करोड़ वर्ष की

थी । पृथ्वी की आयु का भुगर्वित इतिहास में इसे  तृतीयक युग की संज्ञा दी जाती है। इसे  स्तनियों ,

कीटो एवं आवृतबीजी पादपों का युग   कहते है ।    इसे   तीन भागो विभक्त किया जाता है।    विश्व

के सभी नवीन मोड़दार पर्वतो ( अल्प्स,  हिमालय , राकी , एंडीज  आदि) का विकास हुआ ।  इसे पांच

भागो विभक्त किया जाता है ।

1- पेल्युसिन शक :-         इस काल  खंड में डायनोसोर समाप्त हो चुके थे ।

2- इओसिन शक :-     इसी   काल खंड में वृहद हिमालय का निर्माण हुआ । इसी समय  हिन्द

महासागर तथा अटलांटि महासागर का विकास हुआ । जिसमे अनेक स्तनधारी का प्रादुर्भाव हो गया था

। घोडा , गैंडे, सूअर के पूर्वजो का उदभव हुआ था ।

3- ओलिगोसीन  शक :- इसमें आल्पस  पर्वत का निर्माण प्रारम्भ हुआ तथा हिमालय का निर्माण पूर्ण

होने वाला था । पुच्छहीन  बंदर(Ape) का आविर्भाव हुआ, जिसे मानव  का पूर्वज कहा जा सकता है ।

4- मायोसीन शक :-       इसी काल खंड में लघु या मध्य हिमालय का निर्माण हुआ ।  शार्क मछली का

विकास हुआ ।  प्रोकानसल  पुच्छहीन बंदर का स्थानांतरण   अफ्रीका से एशिया तथा यूरोप में हुआ ।

पेंग्विन का आविर्भाव अंटार्कटिक में हुआ ।

5-  प्लायोसिन  शक:-  शार्क मछली का विनास  हुआ ।   मानव की उत्तपति इसी काल खंड में हुई।

नियोजोइक महाकल्प  (Neozoic era):-

20  लाख  वर्ष पूर्व  प्रारम्भ हुआ और आज भी जारी है पृथ्वी की आयु का भुगर्वित इतिहास में इसे चतुर्थ

युग की संज्ञा दी जाती है।  इसे दो  भागो विभक्त किया जाता है।

1- प्लीस्टोसीन  शक:- मानव का विकास क्रम जारी रहा ।  शिकार हेतु पत्थर के औजार बनाये गये।

अपनी जन्म स्थली अफ्रीका से यूरोप तथा एशिया तक पहुंच गये ।

2-  होलोसीन शक :-    इस शक को मानव युग (Age of man) की संज्ञा प्रदान की  गई है । 

मरुस्थलों का उदभव  इसी काल में हुआ ।  मनुष्य ने पशु – पालन एवं कृषि करना प्रारम्भ किया  ।     

निष्कर्ष :-  पृथ्वी की आयु का   भूगर्भित इतिहास में पृथ्वी की आयु से लेकर कल्प , महाकल्प ,
महाद्वीप, पर्वत , झील  तथा विभिन्न प्रकार के प्राणी  ,  जीव- जंतु  के विकास एवं विनास का अध्ययन
किया गया । और जीवाश्म में प्रथम तथा मानव के पूर्वज से मानव के उद्भव और आज तक उनके रह –
सहन  , व्यापर , उधोग  , कृषि एवं  मनोरंजन  का भी अध्ययन किया गया है  ।

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है


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