पवन तीन प्रकार के होते है।

पवन , पवन तीन प्रकार के होते है।

पवन  एक अदृश्य है , जो  देखा नहीं जा सकता है । किन्तु पेड़ -पौधों के हिलने से देखा या अनुभव किया

जा सकता है । पृथ्वी  पर वायु दाब की  भिन्नता के कारण वायु चला करती है। अतः गतिशील हवा के

क्षैतिज प्रवाह को पवन कहते है। समीर  उच्च से निम्न दाब की ओर चलती है ।  जितना  वायु दाब कम  हो समीर  तेज चलेगी ,यद्पि वायुदाब अधिक होने पर  हवाए धीमी चलेगी ।  ताप वायु को गति प्रदान करती है

जिससे हवा ऊपर उठ जाती है । उसको भरने के लिए दूसरी हवा आती है । तब  हवा  चलने  लगती है ।

पवन की गति एवं दिशा वायुदाब की विरलता एवं सघनता पर निर्भर है । वायु की गति ऐनीमीटर से नापी

जाती है । जबकि वायु की दिशा पवन दिक् सूचक यन्त(Wind vane )  से ज्ञात किया जाता है ।

पवन की गति एवं दिशा के विभिन्न मत दिए गये है। तथा पवन के प्रकारो का अध्ययन किया गया है । 

हवा संचालन के महत्वपूर्ण सिध्दांत दिए गये है,  जो निम्न है ।

1 -फेरल का नियम

2 –बाईज बैलेट का नियम

पृथ्वी पर चलने वाली पवनो को  निम्न वर्गो में विभाजित किया जा सकता है ।

1  -स्थाई

2 – सामयिक

3 – स्थानीय

1-स्थाई पवन ( permament  winds):-

ये पवन  उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलने लगती है । वर्ष भर इनकी दिशा प्रायः समान

रहती है , यद्पि उनके क्षेत्र में मौसमी स्थानांतरण होता है ।  इस  कारण  इनको स्थयी समीर कहते है।

इनका  वितरण पुरे गोलब पर होता है। इनकी उत्पति तापमान तथा पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन होता है।

अतः  इनको ग्रहीय हवाये भी कहते है । इनमे प्रमुख हवाये है।

(A)        प्रतिचक्रवती समीर  अथवा  पछुआ पवनें 

(B)    ध्रुवीय पवने

(C)        व्यापारिक पवनें 

(A)  प्रतिचक्रवती पवन अथवा  पछुआ पवनें :-   उपोष्ण उच्च वायु दाब से  60° अक्षांशो पर

विकसित कम वायु दाब की ओर चलती है ।  इनकी  दिशा व्यापारिक हवाओ के विपरीत होती है । यह

उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण -पश्चिम से उत्तर -पूर्व की ओर चलती है ।  तथा    दक्षिणी गोलार्ध उत्तर पश्चिम से

दक्षिण पूर्ब की  ओर चलती है । 

(B)    ध्रुवीय पवने  :- ये हवाए दोनों गोलार्ध में 60 ° से 90 ° के बीच बहाकरती है इन अक्षांशो के मध्य

गतिक न्यून वायुदाब मिलता है ।  जो कि गर्मीय में सक्रिय एवं जड़ो में लुप्त हो जाते है ।  उत्तरी गोलार्ध में

इनकी दिशा उत्तर- पूरब एवं  दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण -पूरब होती है ।पछुआ हवा  के सम्पर्क में आने

पर ये चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात को जन्म देती है ।  जिसके कारण ये हवाए ठंडी एवं बर्फीली हो जाती है ।

(C)व्यापारिक पवने (Trade winds)-

उपोष्ण अक्षांशो पर विकसित उच्च वायुदाब पेटी चलता है, जो  समीर  विषुवत रेखा की ओर चलती है ।

उसे डोलड्रम पेटी कहते है । इस वायु को व्यापारिक पवने कहते है ।  ये वायु महासागरों पर चलती है ।

सगरो पर इनकी 10 से 15 किमी प्रति घंटा के आस- पास रहती  है । जहां व्यापर 30 किमी प्रति घंटा  के

बीच होता  है ।

1 – अश्व अक्षांश (Horse Latitudes):-  उपोष्ण अक्षांशो में उच्च भार की   पेटी विकसित  होती है,

जिसके  कारण वायुमंडल शांत हो जाता है ।  इन परिस्थितियों में घोड़े के व्यापारी घोड़े को रस्से से

बांधकर  सागर में छोड़ देते थे , ताकि भार हल्का हो जाये । ऐसी कारण इसको अश्व अक्षांश  कहते  है ।   

2 -गरजता चालीसा  (Roaring fories):-     दक्षिणी गोलार्ध  में 40 °  से   50 ° के बीच KE क्षेत्र

में व्याप्त पश्चिमी हवा बहती है । तेज गति एवं प्रचंड आवाज का कारण ऐसे गरजता  चालीसा  कहते है।

यहाँ  हवाए तूफान , बादल  छा जाते एवं काफी खतरनाक होती है ।

3-ध्रुवीय पूर्वी हवाएं(Polar Easteries) :    ध्रुवीय पूर्वी वायु  दोनों गोलार्ध में 60 ° से 90 ° के

बीच बहा करती है।  ध्रुवीय क्षेत्रो में ठंडी हवाए विषवत रेखा  की दिशा में बहती है ।  ठंडी एवं सुखी होने

के कारण वर्ष बहुत कम होती है ।

2 – सामयिक पवनें (Periodic   winds):-

तापमान एवं वायुदाब की विशेष स्थिति के कारण जब हवाये किसी निश्चित अवधि में चलती है । तथा जिन

हवाओं की दिशा मौसम या समय के अनुसार विपरीत हो जाती है , उन्हें सामयिक पवन कहते है ।

1-  मानसून पवनें(Mansoon winds ) – मानसून एक अरबी भाषा का शब्द है ,  जिसका अर्थ

मौसम होता है ।  जलवायु विज्ञान में मानसून उन हवाओ को कहते है ,  जो हर छः माह  में अपनी  दिशा

बदलती रहती है । मानसून समीर छः महीने समुद्र से स्थल की ओर तथा छः महीने स्थल से समुद्र की

ओर चलती है ।  इनकी उत्पत्ति कर्क व् मकर रेखाओ के बीच  की व्यापारिक हवाओ की पेटी  में  होती

है। मानसून  सबसे अधिक दक्षिण पूर्व एशिया तथा हिंदमहासार में  चलती है ।   

(a) ग्रीष्मकालीन  मानसून – उत्तरी गोलार्ध में सूर्य  उत्तरायण होने से 21 मार्च के बाद सीधा चमकने

लगता है।  जिससे अधिक ऊष्मा मिलती है।   21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर सीधे चमकने लगता  है ,

जिससे ताप अधिक एवं वायुदाब कम हो जाता है । जिसके फलस्वरूप वायु अधिक दाब  से कम  दाब

की ओर बहने लगती है । तब सागर से स्थल की ओर चलने से वर्षा होती है । जिसको  ग्रीष्मकालीन

मानसून कहते है । यह एशिया में चीन का जापान मानसून एवं दक्षिण एशिया का मानसून । भारत में बंगाल  की खाड़ी  तथा अरब सागर  की मानसून उत्तपन होती है ।

(b)  शीतकालीन  मानसून:-   22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर लंबवत चमकता है , जिसके

कारण उत्तरी गोलार्ध में शीतकाल एवं दक्षिणी गोलार्ध में ग्रीष्मकाल होता है । तब उत्तरी गोलार्ध में उच्च

दाब तथा दक्षिणी गोलार्ध में निम्न दाब उत्तपन्न  होता है । जिसके कारण स्थल भाग से सागर की ओर

समीर चलने लगती है , उसे शीतकालीन मानसून या उत्तरी पूर्वी मानसून कहते है ।

 सामयिक पवनें के नवीन संकल्पना :-

फ़्लान महोदय ने मानसून की तापीय उत्पत्ति का खंडन किया  है तथा मानसून की उत्त्पति वायुदाब एवं

पेटियों के खिसकने के कारण होती है ।  भूमध्यरेखा के पास व्यापारिक हवाओं के मिलने समवाय का

आविर्भाव होता है इसे इंटर ट्रांपीकल कन्वर्जेंस (I.T.C ) कहते  है । उत्तरी सीमा को N.I.T.C. तथा

दक्षिणी सीमा को S.I.T.C.   कहते है ।

2(a) समुद्री समीर या जलीय समीर – दिन में सूर्य की गर्मी से स्थल भाग गर्म हो जाता है और जल

भाग ठण्ड हो जाता है । जिसके  कारण स्थल पर कम वायुदाब एवं समुद्र में अधिक वायुदंब उत्त्पन्न हो

जाता है । जिसके फलस्वरूप दिन में सागर से स्थल की ओर पवनें बहने लगती है । वे  समीर दिन में 10

बजे से सूर्यास्त तक बहती है । तब स्थल का ताप गिर जाता हैऔर कुछ स्थनो पर वर्षा होती है ।

2(b) स्थलीय समीर- रात्रि के समय स्थल भाग पर तापमान कम एवं समुद्रीय भाग पर तापमान अधिक

हो जाता है।  जिसके कारण स्थल से समुद्र की ओर समीर बहने लगती है , उसे  स्थलीय समीर कहते है ।

यह सूर्यास्त से प्रातः 8 बजे  तक बहती है । जिसके फलस्वरूप तटीय भाग में सामान्य जलवायु रहती है ।

3 -पर्वत समीर तथा घाटी समीर  :-

ये वायु भी तापमान के दैनिक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है ।

पर्वतीय पवनें – रात्रि के समय पर्वत शिखर से हवा घाटी के तल की ओर चलती है , उन्हें पर्वतीय पवनें

कहते है । ये हवाएं स्थानीय दशाओ के कारण शुष्क होती है । इन हवाओ के कारण तापक्रम का

प्रतिलोमन भी होता है। जिस कारण  रात्रि में घाटी में पाला एवं तुषार पड़ता है ।

घाटी समीर – दिन के समय पर्वतीय ढाल निचली घाटी की अपेक्षा अधिक गर्म होकर निम्न भर के केंद्र

बन जाते है ,  अतः घाटी  कीओर से  ठंडी वायु आने लगती है। इसे घाटी पवन कहते है ।

3 – स्थानीय पवनें (Local winds):-

किसी स्थान विशेष में प्रचलित समीर को स्थानीय हवाएं  कहते है । ये  हवाएं , तापमान तथा वायुदाब के

स्थानीय अन्तर से  चलती है। ये बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती है । इन हवाओ का सम्बन्ध क्षोभ

मण्डल के  नीचे तक सिमित  रहता है ।

गर्म हवाये———————   प्रवाहित क्षेत्र 

  • चिनूक  –                   राकी पर्वत से पूर्व प्रेयरी के मैदान
  • सिसून –                     सहारा मरुस्थल से यूरोप
  • फाँट –                        आल्प्स पर्वतीय क्षेणी की घाटी 
  • खमसिन –                    मिश्र के उत्तरी भाग 
  • हरमट्टन –                     सहारा क्षेत्र में   
  • सिरको –                       सहारा मरुस्थल से उत्तर दिशा में 
  • व्रिक फील्डर-                आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रान्त में
  • बर्ग-                              पश्चिम अफ्रीका
  • यामो –                            जापान 
  • सान्ताआना-                    U.S.A
  • नार्वेस्टर-                          न्यूजीलैंड
  • लू –                                उत्तरी भारत                 

स्थानीय पवनें (Local winds):-

 ठंडी  हवाये————–प्रवाहित क्षेत्र

  • पापगायो –                  मैक्सिको तट
  • जुरन –                         स्विट्जरलैंड
  • पुर्गा –                          रुसी टुंड्रा प्रदेश
  • ग्रेगाले –                     भूमध्यसागरीय  मध्यवर्ती क्षेत्र
  • बोरा  –                       एड्रियाटिक सागर
  • लेवेन्ट-                       स्पेन  क्षेत्र
  • बाइस –                      फ़्रांस
  • नारदार –                   U.S.A
  • पोनेंट –                     कोर्सिका तट एवं फ़्रांस
  • मिस्ट्रल  –                  फ़्रांस एवं रोन घाटी
निष्कर्ष :-

पवन किसे कहते है ? तथा पवन कितने प्रकार के है? इनके अध्ययन से यह ज्ञात हुआ , कि वायु कि दिशा

एवं गति  वायुदाबांतर से ज्ञात हो जाती है ।  यदि तापमान अधिक होने पर वायुदाब निम्न होता है । यद्पि

तापमान कम होने पर वायुदाब अधिक होता है । जिसके फलसरूप  समीर उचच दाब से  कम दाब कि

ओर चलती  है ।  वायु की गति से मौसम एवं जलवायु ज्ञात हो जाती है।  समय के साथ मानव जीवन की

सुरक्षा का सही प्रयास जनता द्वारा एवं सरकार द्वारा किया जा सकता है ।

वायुमण्डल क्या है ?वायुमण्डल का संगटन क्या है ?

https://en.wikipedia.org/wiki/Wind


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