नमस्कार दोस्तों Absuccessstudy  में आप सभी का स्वागत है । आज हम आप सभी को  ध्वनि प्रदूषण क्या है ?, उनके स्रोत एवं नियंत्रण के उपाय के विषय में विस्तार चर्चा करेंगे । जिसकी जानकारी प्रत्येक मानव के लिये जरूरी है , क्योकि यह प्रदूषण अति घातक है । साथ ही प्रतियोगी परीक्षार्थिओं के  लिये महत्वपूर्ण है । जिसके  प्रत्येक टॉपिक से विभिन्न परीक्षाओं – सिविल ,  ए0 पी0 ओ0,    सी 0 डी0 एस0, बैंकिंग , रेलवे ,super tet ,  upsss(pet )  आदि में  प्रश्न पूछे जाते है । जो विभिन्न प्रतियोगी  परीक्षाओं में सम्मिलित होने वाले परीक्षार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी  सिध्द  होगा ।

-:विषय सूचि:-

1- ध्वनि प्रदूषण क्या है ?ध्वनि प्रदूषण क्या है ?

2- नॉइज़  प्रदूषण के  स्रोत

3-ध्वनि प्रदूषण  के प्रकार

4- नॉइज़  प्रदूषण के दुष्प्रभाव

5-ध्वनि मापन एवं ध्वनि की आवृत्ति मापने की इकाई 

6- ध्वनि  प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

7- निष्कर्ष

 

1- ध्वनि प्रदूषण क्या है ?

आज इस आर्टिकल में ध्वनि प्रदूषण क्या है ? के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे । आइये जनता है, कि जब किसी ध्वनि की तीब्रता अधिक होती है तो उसे शोर कहते है । जो शोर मानव को अशांति एवं बेचैनी उत्पन्न करती है उसे ध्वनि प्रदूषण कहता है । यह अन्य प्रदूषणों की तरह ध्वनि प्रदूषक नहीं होते है । अर्थात आवाज तत्व , यौगिक या पदार्थ नहीं होते है । इसका अन्य प्रदूषकों की तरह संचयन एवं संग्रह नहीं होता है । इसका  प्रभाव  भावी पीढ़ी को प्रभावित नहीं करता है । जो ध्वनि का आस – पास के जीव- जन्तुओ पर तुरंत पड़ता है ।

ध्वनि एक विशिष्ट प्रकार की दाब तरंग होती है जिसका वायु से होकर संचरण होता है। इनके संचरण करने के लिए  माध्यमों की आवश्यकता होती है । जा ठोस ,  तरल एवं गैस  के घनत्व एवं लोचकता पर निर्भर करती है। ध्वनि निर्वात  में संचरण नहीं करती है। ध्वनि का वेग 332 मीटर / सेकण्ड होती है । 1°c ताप की वृद्धि पर ध्वनि के वेग में 60 m/s की वृद्धि होती है । ध्वनि की सामान्य मापन   इकाई को डेसिमल(dB) कहते है ।

2- नॉइज़  प्रदूषण  स्रोत / कारण  –

अभी जस्ट ध्वनि प्रदूषण क्या है ? के बारे आपने जाना है , आगे  नॉइज़ प्रदूषण के स्रोत के  बारे में बतायेंगे  । विश्व की बढ़ती जनसंख्या, नगरीकरण एवं औद्योगीकरण  के कारण प्राकृतिक असंतुलन तथा मानवीय क्रियाकलापों से ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न  हो रहे है । आवाज ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख प्रदूषक है । जो प्राकृतिक एवं मानव दोनों स्रोतों से उत्पन्न होता है ।  ध्वनि प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोत है जो निम्नलिखित है ।

1- प्राकृतिक स्रोतों  द्वारा

2- मानवीय   स्रोतों द्वारा

1- प्राकृतिक स्रोतों  द्वारा – प्राकृतिक के घटनाओ द्वारा उत्पन्न आवाज से जीव – जन्तुओ पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है उसे प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण  कहते है । जैसे – बदलो का गर्जना , बिजली का तनकना , तेज आधी , तूफान , वर्षा , पहाड़ो का टूटना , झरनो का गिरना , भूकंप का आना आदि ।

2- मानवीय   स्रोतों द्वारा – विज्ञानं की प्रगति के साथ – साथ मानव की जरूरतों में वृध्दि हुई है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति के लिये अनेक वैज्ञानिक यंत्रो का  उपयोग करता है । जिससे तीब्र आवाज उत्पन्न होती है जो मानवीय ध्वनि प्रदूषण कहते है । जैसे – वाहनों में वृध्दि , कारखानों , रेलगाड़ियों ,  बस, ट्रक, वायुयान , लाउडस्पीकर , रेडिओ , विवाह समारोह, धार्मिक पर्व , चुनाव प्रचार । आंदोलन, कुकर ,  कूलर ,  एम्बुलेंस आदि।

क्रम. स.– ध्वनि (dB ) —– ध्वनि स्रोत 

1-                    0             —    देहरी द्वार में प्रवेश करने की ध्वनि

2-                     10            —    पत्तियों की खड़खड़ाहट

3-                     20           —    अतिशान्त स्थान की ध्वनि

4-                     30           —     फुसफुसाहट

5-                     40           —     शांत कार्यालय की ध्वनि

6-                     50          —     टाइप  राइटर

7-                     60           —     सामान्य बातचीत के समय ध्वनि

8-                     70            —     टेलीविज

9-                     80          —       ट्रक  आदि की आवाज

10-                   90          – –      जोर से चिल्लाना

11-                    100           —    स्वचालित वाहनों की भीड़ से उत्पन्न ध्वनि / शेर की आवाज

12-                    110            —    फैक्टरी  की बायलर

13-                   120           —    जेट इंजन की आवाज

14-                   130           —     असहनीय शोर

15-                   150          —     जेट प्लेन का उतरना

16-                   180           —     रॉकेट  इंजन

17-                     190         —    ज्वालामुखी विस्फोट

3-ध्वनि प्रदूषण  के प्रकार:-

ध्वनि प्रदूषण के प्रकार के विषय में अध्ययन करेंगे । वर्तमान  समय में ध्वनि प्रदूषण प्रकार के सम्बन्धित अध्ययन एवं अनुसन्धान स्वमानकों केआधार पर  निम्नांकित वर्गों में विभाजित किया गया है-

(1) ग्रामीण ध्वनि प्रदूषण

(2) उप- नगरीय ध्वनि प्रदूषण

(3) नगरीय ध्वनि प्रदूषण

(4) औयोगिक ध्वनि प्रदूषण

(5) संसाधन – खानों के ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण स्रोतों के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है –

(1) प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण

(2) मानव , जीव- जंतु जन्य ध्वनि प्रदूषण

वर्तमान समय में ध्वनि की तीब्रता एवं समय का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है इसके आधार पर तीन भागो में बाटा गया है –

(1) अनवरत उत्पन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण

(2) समयान्तराल पर उत्पन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण

(3) आकस्मिक उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण

अनवरत एवं समयान्तराल पर उत्पन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण अधिक खतरनाक होते है  । जैसे – बाजार , सिनेमाघर धार्मिक प्रवचनों एवं उत्सवों , दूरदर्शन , ट्रांजिस्टर जल प्रपात आदि ।

परमाणु परीक्षण , बम विस्फोट , डायनामाइट से चट्टानों को तोडना ,  ज्वालामुखी आदि  द्वारा आकस्मिक ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न  होते  है  ।

4- नॉइज़  प्रदूषण के दुष्प्रभाव:-

अब हम आप को नॉइज़ प्रदूषण के दुष्प्रभाव के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे । ध्वनि प्रदूषण के मनुष्यो पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन एवं अनुसंधन के अनुसार निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है –

(1) सामान्य प्रभाव

(2) श्रवण सम्बन्धी प्रभाव

(3)  मनोवैज्ञानिक प्रभाव

(4) शारीरिक प्रभाव

(1) सामान्य प्रभाव-    ध्वनि प्रदूषण द्वारा मनुष्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते है । जिसके कारण मनुष्य में चिड़चिड़ापन , क्रोध , तनाव ,सुनने ,बोलने , नीद न आना आदि की समस्या उत्पन्न होती है ।

(2) श्रवण सम्बन्धी प्रभाव –  अध्ययन से ज्ञात हुआ, कि  ध्वनि कि तीब्रता जब 90dB (डेसिबेल ) से अधिक हो जाती हे ,तो जीव जन्तुओ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । जिसके करण  लोगो में श्रवण तंत क्षीण होने लगता है । अंत में लोगो की सुनने की शक्ति कम , बहरापन , आवाज न पहचानना, पागलपन   ,  दृछ्टि   , श्रवण तंत नष्ट हो जाते है । श्रवण क्षीणता के निम्न कारण है -शोर की अवधि , ध्वनि  तंरग की आवृत्ति तथा व्यक्ति विशेष की शोर के प्रति संवेदनशीलता ।

(3)  मनोवैज्ञानिक प्रभाव –  उच्च स्तरी ध्वनि प्रदूहन यो अत्यधिक शोर के कारण मनुष्यो के आचार – व्यवहार में परिवर्तन हो जाते है । अत्यधिक शोर को  निरन्तर सुनने से मनोवैज्ञानिक एवं रोगात्मक विकृति उत्पन्न हो जाती है। दीर्ध अवधि तक ध्वनि प्रदूषणके कारण लोगो में न्यरोटिक मेन्टल डिसऑर्डर हो जाट है तथा मांसपेशियों में तनाव एवं खिचाव हो जाता है । स्नायुओ में उत्तेजना हो जाती है ।

(4) शारीरिक प्रभाव –  उच्च शोर के करण मनुष्य निम्न विकृतियाँ एवं रोगों से ग्रसित हो जाता है – उच्च रक्तचाप , हृदय रोग ,    अल्सर , मानसिक तनाव , पाचन तंत में अव्यवस्था, किडनी , यकृत ,मस्तिष्क, आखो की पुतलियों में खिचाव  , पेट एवं अंतड़ियो        आदि ।  विस्फोटों तथा सोनिक बूम की अचानक अति ध्वनि के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो जाता है । 150dB- शारीरिक पीड़ा ।

5-ध्वनि मापन एवं ध्वनि की आवृत्ति मापने की इकाई – 

ध्वनि मापन की इकाई को डेसिबेल (dB) कहते है । ध्वनि  की तीब्रता मापन की दो इकाई है –

(1)  डेसिबेल (dB)  (2)  वेटेड साउण्ड प्रेसर SPL  या  भारित ध्वनि दाब (dB(A)

डेसिबेल मानक शून्य से प्रारम्भ होता है , जो  सामान्य मनुष्य के कान द्वारा  सुनी जा सकती है ।

ध्वनि की आवृत्ति मापने की इकाई हर्ट्ज है । आवृत्ति के आधार  पर ध्वनि  को तीन भागो में बाँटा गया है , जो  निम्न  है –

(1 ) श्रव्य तरंग

(2) पराश्रव्य  तरंग

(3) अवश्रव्य तरंग

(1 ) श्रव्य तरंग-    मनुष्य के कान 20 से 20000  हर्ट्ज तक सुन सकते है , इसे मनुष्य का श्रव्य परास कहते है ।

(2) पराश्रव्य  तरंग- श्रव्य परास से अधिक आवृत्ति की तरंगों को पराश्रव्य  तरंग कहते है । जिसकी आवृत्ति 20000 हर्ट्ज से अधिक होती  है ।  इस आवृत्ति को चमगादड़ सुन सकते है ।

(3) अवश्रव्य तरंग –  श्रव्य परास से कम  आवृत्ति की तरंगों को अवश्रव्य  तरंग कहते है , जिसे सामान्य कान द्वारा नहीं सुन सकते है । यह यंत्रो द्वारा सुने जा सकते है । जिसकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज से कम होती है ।   

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव –

=>50 dB- नीद में बाधा

=>60dB-1 मीटर दूरी से बातचीत में बाधा

=>78dB – जानलेवा बीमारियाँ

=>90dB- श्रवण शक्ति का हास्य

=>130dB- मनोवैज्ञानिक प्रहार

=> 150dB- शारीरिक पीड़ा

6- ध्वनि  प्रदूषण नियंत्रण के उपाय :-

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण पूर्णतः करना सम्भव नहीं है , किन्तु कम किया जा सकता है । जिसमे ध्वनि प्रदूषण सम्बन्धित व्यक्तिय विशेष तथा मानव समुदाय दोनों से होता है । अतः इसका समाधान व्यक्तिगत , सामुदायिक तथा सरकारी स्तरों पर किया जा सकता है । ध्वनि प्रदूषण निवारक कार्यक्रमों दो पक्षों में किया जाता है ।

(1) ध्वनि तथा शोर की तीब्रता को कम करना 

(2) ध्वनि तथा शोर का नियंत्रण करना 

(1)  शोर  के स्रोतों को नियंत्रण कानून की सहायता से रोक लगाना , जैसे- वाहन ,  मोटर ,बस एवं ट्रक आदि पर रोक लगाकर शोर कम किया जा सकता है ।

(2) विवाह समारोह , धार्मिक उत्सव , चुनाव प्रचार – प्रसार , आंदोलन आदि में लाउडस्पीकर  पर प्रतिबन्ध लगाकर शोर कम किया जा सकता है । 

(3)  उद्योग , कारखानों  में उत्पन्न शोर को कानून बनाकर नियंत्रण किया जा सकता है ।

(4) रेडियो , तरलीवीजन  , मोबाइल , फोन, पंखा  कूलर , आदि  घरेलू संसाधन की ध्वनि एवं शोर को कम किया जा सकता है ।

 (5)  रेल मार्ग एवं राज्य मार्ग शहर से दूर लेजाकर शोर कम किया जा सकता है । 

(6)  सड़को के किनारे हरे वृक्षों की कतार में लगाने से ध्वनि प्रदूषण 10 से 15dB कम किया जा सकता है ।

(7) शोर स्थान पर काम करने वाले लोगो को हेलमेट , कान दस्ताना एवं कानों का प्लग लगाकर कम किया जा सकता है ।

(8) ध्वनि एवं शोर नियंत्रण अधिनियम बनाकर रोका जा सकता है ।

 (9) भारतीय दंड संहिता   1860  द्वारा रोका गया ।

(10)  वाहन अधिनियम 1988

(11)  पर्यावरणीय संरक्षण अधिनियम 1986

7- निष्कर्ष- 

आशा है कि  ध्वनि प्रदूषण क्या है ?  उनके स्रोत एवं नियंत्रण के बारे में जो जानकारी दी गयी है , वह आप को अच्छा लगा होगा । यदि  यह Article अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों को share  एवं Like करे ।  ध्वनि प्रदूषण के सम्बन्धित कोई और जानकारी के लिये Comment  box  अवश्य लिखे ।  आपके उज्जवल भविष्य की कामनाएं  करता हूँ ।

धन्यवाद 

 

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