नमस्कार दोस्तों Absuccessstudy में आप सभी का स्वागत है । आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे कि जल प्रदूषण क्या है ?, उनके स्रोत एवं नियंत्रण के विषय में पूरी जानकारी दी जायेगी । जिसके प्रत्येक टॉपिक से विभिन्न परीक्षाओं – सिविल , ए0 पी0 ओ0, सी 0 डी0 एस0, बैंकिंग , रेलवे ,super tet , upsss(pet ) आदि में पूछे गये प्रश्नों को शामिल किया गया है । जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होने वाले परीक्षार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिध्द होगा ।
-:विषय सूचि:-
1- जल प्रदूषण क्या है ?
1.2- जल प्रदूषण के स्रोत
1.3- वाटर प्रदूषण की प्रकृति
1.4- वाटर प्रदूषण का वर्गीकरण
1.5- पानी प्रदूषण का वर्गीकरण
1.6-जल प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव
1.7- जल प्रदूषण का नियंत्रण
2- निष्कर्ष
1- जल प्रदूषण क्या है ?
आज जस्ट हम जल प्रदूषण क्या है ? के बारे में जानकारी देंगे । जल जीवमण्डल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यौगिक है। यह प्रत्येक जीव – जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा आवश्यक पदार्थ है । जल के वीना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है । इसके आलावा जल बिजली के निर्माण , जल परिवहन , नौका विहार , फसलों की सिचाई एवं सीवेज की निपटना आदि महत्वपूर्ण है । जलमण्डल के समस्त जल का मात्र 1% जल विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होता है , जिसमे भूमिगत जल सबसे अधिक जल प्रदान करता है ।
मानव जनसंख्या में तीब्र वृध्दि , औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण जल की मांग में गुणोत्तर वृध्दि हुई है । जिसके परिणाम स्वरूप जल की उपलब्धता एवं गुणवत्ता में भारी गिरावट आयी है । मानव – जनित स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषकों का जल अधिक जमाव हो जाता है । तो वह जल सहन शक्ति एवं शुध्दिकरण की क्षमता से अधिक हो जाता है, तब जल प्रदूषित हो जाता है ।
विभिन्न स्रोतों एवं भण्डारों के जल के भौतिक , रासायनिक तथा जीवीय विशेषताओं में प्राकृतिक तथा मानव – जनित प्रक्रियाओं एवं कारणों से उस सीमा तक अवनयन एवं गिरावट को जल प्रदूषण कहते है । जिससे मनुष्य समुदाय , जन्तु एवं पादप समुदायों को हानि पहुँचती है ।
1.2- जल प्रदूषण के स्रोत:-
अभी आप ने जाना है, कि जल प्रदूषण क्या है ? और आगे जल प्रदूषण के स्रोत के विषय में जानकारी दी जायेगी । जल कि गुणवत्ता को कम करने वाले तत्वों को जल प्रदूषक कहते है । इनका निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकरण किया गया है ।
(A) प्रदूषकों के स्रोतों के आधार पर
(B) भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर
(C) विगलनाता के आधार पर
(A) प्रदूषकों के स्रोतों के आधार पर – निम्नलिखित भागो में विभक्त किया गया है।
(1) औद्योगिक प्रदूषक – क्लोराइट, सल्फाइड, कार्बोनेट, अमोनीकल ,नाइट्रोजन ,नाइट्रेट्स नाइट्रेट्स आदि । भारी धात्विक पदार्थ यथा – पारा ,तांबा , सीसा , जस्ता , कार्बनिक यौगिक एवं रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि ।
(2) कृषि जोत प्रदूषक- उर्बरक , कवकनाशी , कीटनाशी एवं जीवाणुनाशी आदि ।
(3) नगरीय प्रदूषक – विभिन्न प्रकार के आयन सीवेज जल तथा मनुष्य एवं जानवरो के मृत शरीरो से उत्पन्न फास्फेट तथा नाइट्रेट आयन आदि ।
(4) प्राकृतिक प्रदूषक – ज्वालामुखी , राख तथा धूल आदि ।
(B) भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर-
(1)भौतिक प्रदूषक- रंग , गंदलापन , अवसाद राख , तेल , ग्रीस एवं सरल ठोस पदार्थ आदि
(2) रासायनिक प्रदूषक-क्लोराइट, सल्फाइड, कार्बोनेट, अमोनीकल ,नाइट्रोजन ,नाइट्रेट्स नाइट्रेट्स आदि।
(C) विगलनाता के आधार पर-
(1) विगलित न होने वाले
(2)विगलित होने वाले
1.3- वाटर प्रदूषण की प्रकृति:-
जल प्रदूषण के स्रोत के विषय में ऊपर जानकारी दी गयी है ।तथा जल प्रदूषण की प्रकृति के विषय में बताऊगा। जल प्रदूषण की प्रकृति एवं तीब्रता का कई कारको का गहरा सम्बन्ध है । अपशिष्ट जल की निपटान (Disposal) तथा उसके शोधन की व्यवस्था जलीय दशाएं तथा नदियों की स्वमं शुध्दिकरण की क्षमता है । परन्तु कोई जल पूर्णतया शुध्द नहीं होता है । वर्षा का जल भी पूर्णतया शुध्द नहीं होता है क्योकि वायुमण्डल से co2 मील जाता है , जिसके कारण अम्लता बढ़ जाती है तथा pH घाट जाता है । जल का प्रमुख गुण इसकी घोलन शक्ति है । जिसमें अनेक तत्वों घुलने की क्षमता है । जब वर्षा जल प्रवाही होता है , तब मार्ग में अनेक तत्व मिलकर इसकी मौलिकता को कम कर देते है ।
जल की गुणवत्ता का मूल्यांकन एवं निर्धारण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है ।
1- भौतिक आधार
2- रासायनिक आधार
3- जैविक मानकों
सामान्य रूप से जल की गुणवत्ता का निर्धारण –
1- जीव आक्सीजन मांग(BOD)
2- रासायनिक आक्सीजन मांग(COD)
3- घुली आक्सीजन (DO)
4- pH मान के आधार
1.4- वाटर प्रदूषण का वर्गीकरण:-
जल प्रदूषण की प्रकृति के विषय में जानकारी दी गयी है , आगे पानी अवगुण का वर्गीकरण के बारे में पूरी जानकारी बताऊगा । जल के भण्डारों एवं स्रोतों के आधार निम्नलिखित रूप से वर्गीकरण किया गया है ।
(A) जल भण्डारों के आधार – 1- धरातली जल प्रदूषण
2- भूमिगत जल प्रदूषण
3- झील जल प्रदूषण
4- समुंद्री जल प्रदूषण
(B) जल स्रोतों के आधार पर – 1- घरेलू अपशिष्ट से जल प्रदूषण
2- औद्योगिकअपशिष्ट से जल प्रदूषण
3- सीवेज से जल प्रदूषण
4- ठोस अपशिष्ट से जल प्रदूषण
धरातली जल प्रदूषण- धरातल के ऊपर पाये जाने वाले सभी जल को धरातली जल कहते है । यथा – नदी , तालाब , झील , पोखरा एवं समुंद्री आदि । जब छोटी – छोटी सरिता धीरे – धीरे प्रवाहित होती हुई , बड़ी नदियों में मिलती है । अपने साथ एवं अपने मार्ग में अनेक अपशिष्ट पदार्थ , भौतिक , रासायनिक एवं जैविक तत्वों को साथ लेकर बड़ी नदियों को प्रदूषण कर देती है । जिसके फलसरूप सभी नदियों के जल प्रदूषिण हो जाते है ।
वर्षा जल भी पूर्णतः शुध्द नहीं होता है, क्याकि नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण वायु में अनेक हानिकारक गैस उत्सर्जित होती रहती है । वह वर्षा जल से भूमिगत जल को प्रदूषित कर देती है । तथा वर्तमान समय में अधिक उत्पादन के लिये फसलों पर अनेक रासायनिक तत्वों का प्रयोग किया जाता है । जो जल में घुल कर नाली – नालो के माध्यम से नदियों में पहुंचते है । सीसा , पारा , कैडमियम , जस्ता , अस्वेस्ट्स के रेशे आदि नदी जल को प्रदूषित कर देते है ।
नदियों का प्रदूषण मुख्य दो रूप में होता है –
1- प्वाइंट या बिंदु प्रदूषण – औद्योगिक एवं नगरीकरण
2- नान प्वाइंट प्रदूषण- कृषि क्षेत्र
1.5- पानी प्रदूषण का वर्गीकरण:-
पानी अवगुण का वर्गीकरण में धरातली जल प्रदूषण के बारे में जानकारी दी गयी है । जस्ट आगे भूमिगत जल प्रदूषण, झील जल प्रदूषण, समुंद्री जल प्रदूषण के विषय में बताया जायेगा । जो निम्न है ।
भूमिगत जल प्रदूषण- वर्षा जल एवं धरातल के विभिन्न जल विभिन्न मध्यमों से रिस कर पृथ्वी के अन्दर चला जाता है उसे भूमिगत जल कहते है । जो जीव- जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये बहुमूल्य है । किन्तु भू पृष्ठीय जल अपने साथ अनेक प्रदूषकों को सतह के अन्दर ले जाता है , जिससे भूमिगत जल प्रदूषण युक्त हो जाता है । कृषि क्षेत्रों से कीटनाशी , रोगनाशी तथा शाकनाशी रसायनों, नगरीकरण एवं औद्योगिक क्षेत्र के कचरा , सीवर के गंदे जल आदि नदियों- झीलों एवं तालाब से मिलकर अन्तः सरिता प्रवाहित होता है । यह जल रिस कर स्टेटा को प्रदूषित कर देता है । भूमिगत जल को कुआँ, हैण्डपम्पों एवं ट्यूवेल आदि के माध्यम से प्राप्त कर मनुष्य पीने एवं सिचाई के लिये प्रयोग करता है । तो उस जल से अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती है ।
झील जल प्रदूषण- झील के जल मानवीय एवं प्राकृतिक कारणों से प्रदूषित हो गयी है , जिससे जल की सान्द्रता बढ़ जाती है । जब सान्द्रता बहुत अधिक हो जाती है, तब इसे मारक कारक कहते है । यह जल जीव- जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये हानिकारक हो जाता है । मनुष्य में फेफड़े अथवा कैंसर का रोग हो जाता है । संयुक्त राज्य अमेरिका की सुपीरियर झील का जल अस्बेसरस के कारण अत्यन्त प्रदूषित हो गया है जिससे कैंसर बीमारियाँ उत्पन्न होने लगी है ।
समुंद्री जल प्रदूषण- सागरीय जल प्रदूषण होने का मुख्य कारण सागर के तटवर्ती भागो में नगरीय एवं औद्योगीकरण के अपशिष्ट पदार्थो के विसर्जन से होता है । जो सागर का जल में मिलकर प्रदूषित कर देता है।
1.6-जल प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव:-
बढ़ती जनसंख्या , नगरीकरण एवं औद्योगीकरण, वनो की कटाई के कारण जल की उपलब्धता तथा गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ा है , जिसके कारण जल प्रदूषित हो रहे है । जिसका सबसे अधिक शिकार मनुष्य एवं सूक्ष्म जीव होते है , जल प्रदूषण के कारण अनेक संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते है । यथा – हैजा ,तपेदिक ,अतिसार , पीलिया , मियादी ज्वर, पारटाइफाइड, पेचिस आदि का आविर्भाव होता है । ठोस प्रदूषकों से युक्त जल से अस्बेस्टोसिस नामक जानलेवा रोग हो जाता है।
-पारा युक्त जल पीने से मिनामाता रोग होता है।
– पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता से ब्लू बेबी सिंड्रोम रोग होते है ।
– जल में कैडियम की अधिकता से इटाई -इटाई रोग ।
– आर्सेनिक की अधिकता के कारण ब्लैक फुट नामक बीमारी हो जाती है ।
-नदियों, झीलों तथा तालाबों के प्रदूषण युक्त जल की सिचाई से फसल एवं मृदा नस्ट हो जाते है ।
-सागर के तटवर्ती जलीय भाग में खनिज तेल के रिसाव से सागरीय जीव – जंतु की मृत्यु होने लगती है ।
1.7- जल प्रदूषण का नियंत्रण-
जल प्रदूषण का नियंत्रण के संयुक्त राज्य संघ तथा भारत सरकार ने अनेक निवारण कार्यक्रम चलाये गए है । जिसकी सफलता के लिये व्यक्तियों , समुदायों , सामाजिक – आर्थिक सगठनों, स्वयं सेवी सस्थाओं तथा राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर कार्यक्रम चलाये जा रहे है । जल प्रदूषण रोकने के लिये अनेक कार्यक्रम चला कर जन – जन को जागरूक किया जा रहा है ।
भारत सरकार ने जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1974 में पारित किया है । भारत सरकार ने 2019 में जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना किया है , जिसका उद्देश्य जल कीगुणवत्ता एवं उपलब्धता को बनाये रखना है । तथा जल प्रदूषण को रोकने के लिये जन मानस को जागरूक है ।
2- निष्कर्ष:-
आज आपने जाना , कि जल प्रदूषण क्या है ?, उनके स्रोत एवं वर्गीकरण तथा जल प्रदूषण नियंत्रण के विभिन्न प्रकार कि जानकारी दी गयी है । जिससे जल की उपलब्धता एवं गुणवत्ता हमेशा प्राप्त होती रहे । यदि यह Article अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों को share एवं Like करे । और अधिक जानकारी के लिये Comment box लिखे । आपके उज्जवल भविष्य की कामनाएं करता हूँ ।
धन्यवाद
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2 Comments
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