नमस्कार दोस्तों ,Absuccessstudy में आप सभी का स्वागत है । आज हम सिंचाई किसे कहते है ? उनके साधन एवं विधियाँ के बारे में विस्तार से जानकारी दी जायेगी । जिससे विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है । जो बहुत उपयोगी है । भारत कृषि प्रधान देश है । जिसकी 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है । किन्तु भारत में वर्षा की अनिश्चितता एवं असमान वितरण अधिक पाई जाती है । जिसके कारण वहाँ फसलों की सिंचाई अनिवार्य हो जाती है । वास्तव में ऐसे प्रदेशों में सफल कृषि करने के लिये सिंचाई करनी पड़ती है ।
भारत के अधिक भागो में शीत ऋतू में वर्षा नहीं होती है । इसलिए रवि की फसलों को सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है अच्छी खेती , पौधों उगने व् बढ़ने के लिये जल की आवश्यकता होती है । प्राकृतिक वर्षा कीअनुपलब्धता पर सिंचाई का ही विकल्प अपनाये जाते है । भारत में आदि कल चली आ रही परम्परागत तकनीकी साधन एवं विधियाँ है ,किन्तु आज आधुनिक तकनीकी एवं विधियाँ को अपना कर कृषि के क्षेत्र में प्रगति हुई है ।
1- सिंचाई किसे कहते है ?
आज इस Article में सिंचाई किसे कहते है? के बारे में जानकारी दी जायेगी । जो खेती के लिये बहुत उपयोगी है । वर्षा के अतिरिक्त पेड़- पौधों एवं फसलों को जल पहुंचाने की प्रक्रिया को सिंचाई कहते है । या विभिन्न प्रकार की कृषि उपजों को पैदा करने की कृतिम विधि से जल देने की विधि को सिंचाई कहते है । यह का कार्य देश में प्राचीन कल से चला आ रहा है । आरम्भ में खेती परम्परागत तकनीकी का प्रयोग किया जाता था । किन्तु आज अनेक वैज्ञानिक विधि विकसित हो गयी है।
2- भारत में सिंचाई के कारण एवं आवश्यकता:-
सिंचाई किसे कहते है? के बारे में जानकारी दी गयी है । आगे भारत में सिचाई के कारण एवं आवश्यकता के विषय में विस्तार से बताया गया है । जो निम्नलिखित कारण है ।
1- वर्षा की अनिश्चतता
2- देश में वर्षा का आसमान वितरण
3- वर्षा के जल का बह जाना
4- सूखा
5- विशेष फसलों के लिए अधिक पानी
6- चारा प्रदान करने वाली फसलें
7- मिटटी की किस्म
8- सघन खेती
1- वर्षा की अनिश्चतता – भारत में कही बहुत वर्षा और कुछ जगह कम वर्षा के कारण सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
2- देश में वर्षा का आसमान वितरण- थार के रेगिस्तान में बहुत कम वर्षा होती है । इसलिए सूखे इलाकों में खेती के लिए जल की पूर्ति की जाती है ।
3- वर्षा के जल का बह जाना – वर्षा का जल बह कर समुन्द्र में चला जाता है , तब कृषि हेतु सिंचाई की जाती है ।
4- सूखा- सूखा वाले क्षेत्रो में कृषि के लिए जल की जरूरत होती है ।
5- विशेष फसलों के लिए अधिक पानी- चावल , जुट एवं गन्ना आदि के लिये अधिक पानी चाहिए ।
6- चारा प्रदान करने वाली फसलें – चारा वाली फसलों में अधिक पानी की आवश्यकता होती है ।
7- मिटटी की किस्म- लावा मिटटी में पानी अधिक सोखती है ।
8- सघन खेती- अधिक उपज बढ़ाने के लिये वर्ष में कई बार फसल उगानी पड़ती है । जिसमे जल की अधिक खपत होती है ।
3- सिंचाई के साधन:-
जस्ट अब हम आप लोगो को सिंचाई के साधन के बारे में विस्तार से बताऊगा । भारत में सिंचाई के मुख्य स्रोतों में नलकूप एवं कुएँ है जिससे 62.82% होती है । नहरों से 23.66% तथा तालाबों द्वारा 2.52% और अन्य स्रोतों से सिंचाई की जाती है ।जो निम्नलिखित है
3.1- कुओ तथा नलकूप
3.2- तालाब
3.3- नहरे
3.1- कुओ तथा नलकूप- कुएँ एवं नलकूप द्वारा सिंचाई आदि काल से होती चली आ रही है । जिसे आरम्भ में परम्परागत तकनीकी ढेकूर मोट, चरखी परसियन व्हील द्वारा जल निकाला जाता था । वर्तमान समय में विद्युत् एवं डीजल इंजन से निकाला जाता है । नलकूप एवं कुएँ की सिंचाई में भारत में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है । भारत में 95 % नलकूप उत्तर प्रदेश, पंजाब ,हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश ,महाराष्ट आदि है ।
3.2- तालाब- तालाब द्वारा खेती भारत के प्रायद्वीपी के पूर्वी भाग में प्राचीनम काल से चली आ रहीहै । तालाब द्वारा सबसे अधिक सिंचाई तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली में होती है । इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश,l कर्नाटक, महाराष्ट ,मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ , प 0 बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में की जाती है ।
3.3- नहरे – भारत में प्राचीन काल से नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। नहरों द्वारा अधिकतर खेती उत्तरी भारत के मैदानी में होती है ।
राज्य -नहरों द्वारा सिचिंत क्षेत्र ( हजार हेक्टेयर) का प्रतिशत —नहरों द्वारा सिचिंत क्षेत्र का प्रतिशत
उत्तर प्रदेश – 2557 15.70%
राजस्थान 1859 11.42%
आंध्र प्रदेश – 1429 8.77 %
हरियाणा 1210 7.43%
भारत में सिंचाई के प्रमुख्य नहरे–
1- इंदिरा गाँधी नहर
2- भाखड़ा नहर
3- शादी नहर
4- ऊपरी गंगा नहर
5- सरहिंद नहर –
6- निचली गंगा नहर
7- पश्चिमी यमुना नहर
8-पूर्वी यमुना नहर
4 – भारत में सिंचाई की विधियाँ :-
आगे भारत में सिंचाई की विधियों के विषय से अध्ययन किया जयेगा । खेती में जल के समुचित प्रयोग के लिए सिंचाई विधियों की जानकारी आवश्यक होती है । जो निम्नलिखित है।
4.1- सतही विधि
4.2- भूमिगत विधि
4.3- ड्रिप विधि
4.4- स्प्रिंकलर विधि
4.1- सतही विधि- यह अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो में प्रयोग किया जाता है। इस विधि में जल का वाष्प अधिक होता है। कुछ जल रिसकर बर्बाद हो जाता है । जो निम्नलिखित प्रकार की होती है ।
1- प्रवाह विधि या जल प्लवन विधि
2- क्यारी या बरहा विधि
3- कूँड़ विधि
4- थाला विधि
1- प्रवाह विधि या जल प्लवन विधि – यह विधि का प्रयोग बड़े – बड़े खेतो की खेती के लिये उपयोग किया जाता है । यदि खेत बड़ा है , तो खेत कई भागो में सुविधा अनुसार बाट लेते है । इस विधि से खेत का पलेवा या धान की सिंचाई हेतु प्रयोग किया जाता है ।
2- क्यारी या बरहा विधि – इस विधि में खेत को समतल करके एक ओर थोड़ी दलान बनाते है । खेत में बरहे एवं छोटी – छोटी क्यारियाँ बना लेते है । बरहे इस प्रकार बनाते है कि पानी को अधिक चक्कर न काटना पड़े । तथा उससे दोनों ओर की क्यारियों की सिंचाई अच्छी प्रकार हो सके । क्यारियों का आकर भूमि की किस्म , ढाल, फसल एवं सिंचाई के साधन पर निर्भर करता है ।
3- कूँड़ विधि- यह विधि दो पंक्तियों के बीच में पतली नाली बना ली जाती है , जिन्हे कूँड़ कहते है । कूँड़ को खेत की मुख्य नाली में मिलते है ।कूँड़ सदैव खेत की ढालki दिशा में होते है जिससे पानी खेत के अन्त तक आसानी से पहुंच जाय।
4.2- भूमिगत विधि :-
सिंचाई की भूमिगत विधि के विषय में जानकारी दूगा । जो निम्नलिखित है ।
1- प्राकृतिक विधि
2- कृत्तिम विधि
1- प्राकृतिक विधि- इस विधि द्वारा पानी सीपेज होकर जमीन के अंदर जाते है जिससे सिंचाई पेड़ – पौधे होती रहती है। नहर , नाले , चेकडैम एवं नदी इत्यदि से पानी रिसकर सिंचाई होती है ।
2- कृत्तिम विधि- यह विधि अधिक खर्चीली होती है । इस विधि से पौधों की जड़ो में पानी डाला जाता है ।जड़ो में पानी डालने के छिद्रक पाइप का प्रयोग किया जाता है ।
4.3- ड्रिप विधि:-
इस विधि में सिंचाई के जल को पौधों के जड़ क्षेत्र में बूँद- बूँद करके दिया जाता है ।बूँद- बूँद जल पहुंचने के लिए पी0 वी0 सी 0 पाइप लाइन खेत में बिछायी जाती है । जिसमे जगह- जगह नोजिल लगाये जाते है । इन पाइपों में 2.50 किग्रा / वर्ग सेमीke दबाव पर जल को छोड़ा जाता है । जो नोजिल से निकलकर भूमि को धीमे – धीमे नम करता है । इस विधि को इजराइल देश में विकसित की गयी है ।
ड्रिप विधि के गुण –
1- यह विधि कम वर्षा वाले क्षेत्रो में उपयुक्त है ।
2- कम जल से अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई की जाती है ।
3- जल की बर्बादी कम होती है ।
4- भूमि का समतलीकरण जरूरी नहीं होता है ।5
5- ऊंचे स्थानों की खेती आसानी से होती है ।
ड्रिप विधि के दोष –
1- प्रारम्भ में धन अधिक खर्च होता है ।
2- तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है ।
3- स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है ।
4.4- स्प्रिंकलर विधि:- ( छिड़काव )
जिन क्षेत्रो में पानी की कमी होती है तथा भूमि समतल नहीं होती है , वहां पर इस विधि का प्रयोग लाभदायक रहता है। इसमें पानी को पाइपों द्वारा खेत में ले जाते है । खेत में स्वचालित मशीन द्वारा फसलों पर छिड़काव करके सिंचाई की जाती है । इस विधि का प्रयोग उन्नतशील कृषक करते है । पौध घर अथवा फुलवारियों में अधिक प्रयोग होता है ।
छिड़काव विधि के गुण –
1- जहां वर्षा बहुत कम होती है ।
2- सारे क्षेत्र में पानी का समान वितरण होता है ।
3 – उच्च- नीच और सभी प्रकार भूमि की सिंचाई की जाती है ।
4- पानी के साथ पोषण तत्व फसलों को दिये जा सकते है ।
5-भू क्षरण का कोई खतरा नहीं होता है ।
छिड़काव विधि के दोष –
1- श्रम तथा धन की अपेक्षाकृत अधिक आवश्यकता होती है ।
2- कुशल श्रम की आवश्यकता पड़ती है ।
3- तेज हवा में जल का समान वितरण नहीं होता है ।
4- अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।
5- गर्म एवं शुष्क वायु वाले क्षेत्रो के लिये उपयुक्त नहीं है ।
5- निष्कर्ष :-
परीक्षार्थियों आज आप लोगो ने इस Article में जाना है, कि सिंचाई किसे कहते है ? उनके साधन एवं विधियाँ के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है । साथ – साथ ड्रिप विधि एवं स्प्रिंकलर विधि के विषय में अध्ययन किया गया है । जिससे विभिन्न परीक्षाओ में प्रश्न पूछे जाते है । यदि इस टॉपिक सम्बन्धित कोई तथ्य शेष रह गया हो तो comment box अवश्य लिखे । और इस लेख को social media और अपने दोस्तों को share करे तथा like अवश्य करे ।
धन्यवाद
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